Tuesday 29 March 2011

वेदना

आओ सुनाऊ एक कहानी
आँचल में दूध आँखों में पानी
कितने दुखों की मारी
खानी भी पूरा न मिलता था
फूल सा मुखड़ा कुम्हलाता था
एक दिन सास चिल्लाई
तुझे क्या लाज ना आयी
अरी .. ओ कुलटा
कैसा सीका ये परांठा
तुझे  नहीं कोई सेंस
तेरे बाप ने क्या बंधी है भैंस
प्रतिदिन की येही कहानी
आँचल में दूध नैनों में पानी
उठो बहनों आगे बढ़ो
बेटी को कुछ भी शिक्षा दिलवाओ
पर आर्थिक रूप से स्वंतंत्र बनाओ

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