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                                                                            श्रद्धांजलि
  मेरी अजन्मी बेटी,
                               मै यह पाती  क्यों लिख रही हूँ  मुझे भी नहीं पता |हो सकता है इसे लिखने पर मेरे दिल का कुछ बोझ कम हो जाए या  मेरा अपराध कुछ कम हो जाए क्योंकि इस क्रूर समाज के इस घोर अपराध में परोक्ष रूप में मै भी सम्मलित हूँ |
                           तू तो जानती है क़ि तेरी माँ कितनी बेबस थी और बेटी तू कितनी निरीह थी जिसे संसार में आने से पहले समाप्त कर दिया गया |यह निर्णय मेरा नहीं था ,तेरे  निर्मोही पिता का था ,पूरे परिवार का था ,मेरा तो वश ही नहीं चला फिर भी इस क्रूरता का हिस्सा मै भी हूँ तू तो मेरा अंश थी ,मेरे शरीर का हिस्सा थी , प्रकृति  की इस अनमोल दें को समाप्त करने से ज्यादा भयावह किसी माँ के लिए क्या हो सकता है ?
                            समाज कभी नहीं बदला ,उसका शोषण करने का तरीका बदल गया | सीता को भी अग्नि परिक्षा देनी पडी थी ,आज भी नारी को शोषित होना पड़ता है ,किसी को जन्म से पहले मार दिया जाता है ,किसी को दहेज़ की वेदी पर चढ़ा दिया जाता है |
              तेरी माँ भी तिल -तिल कर जलती है और अपनी जन्मी बेटियों के लिए जीती है |तेरी दोनों बहनों की स्तिथी भी कितनी दयनीय है |तेरी दादी स्वंय महिला है पर फिर भी पोतियों को दूध भी नहीं देती ,खाना भी नहीं देती |तेरी  चाची के पुत्र को दूध से भरा कटोरा  देती है <चाची को सुबह से शाम तक मनुहार करके खाना खिलाती है|तब तो लगता है इस संसार में आकरमैंने ही क्या किया है ?तू भी इस संसार में आकर क्या करती ?तिल -तिल मरने से तो अच्छा पहले ही मरना अच्छा है |
                          विज्ञान की इतनी बड़ी उपलब्धि थी ,भ्रूण परीक्षण ,ताकि जन्म से पहले ही बच्चे में यदि कोई विकृति आये तो उसे दूर किया जा सके |समाज ने इस वरदान को अभिशाप बना दिया और लिंग परीक्षण होने लगा ,समाज विकृत होने लगा और महिलाओं की संख्या घटने लगी ,असमानता बढ़ने लगी |
                               अनपढ़ समाज में नवजात कन्या को जहर देकर या पत्थर से दबाकर मारा जाता था ,आधुनिक समाज में लिंग परीक्षण करके मारा जाता है |पर मेरी बेटी| तेरा बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा |मै भी सम्मलित थी इस जघन्य अपराध में ,तेरी बहनों के बेहतर भविष्य के लिए , मै सपथ उठाती हूँ  क़ि इन्हें इतना सक्षम बनाउंगी क़ि किसी पर बोझ न हो ,अपने निर्णय स्वयं ले सके |पर बेटी , मुझे प्रायश्चित भी तो करना था,तुझे  श्रन्दांजलि भी देनी थी |मै किसी बहाने से डेल्ही आयी हूँ अपनी सहली के पास |आज  मैंने नसबंदी कराई है ताकि आगे कोख छलनी न हो सके ,कुछ सालो बाद पता चलेगा,तब तक वक्त आगे निकल चुका होगा  ,कोई कुछ नहीं कह सकेगा ,यही सच्ची श्रदांजलि होगी |  
                                                                                                                                एक निरीह माँ